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कब तक काटते रहेंगें पेड़

दुर्भाग्यवश हमारे देश के नौकरशाहों को अभी तक यह समझ ही नहीं आया कि है कि नई निर्माणपरियोजनाओं पर काम करते हुए उन स्थानों पर पहले से लगे हुए पेड़ों को काटने से बचा भी जा सकता है। चूंकि हमने यह सब नहीं जाना है न जानने की कोशिश ही की है इसलिए ही हम पेड़ों को बेरहमी से काटते ही चले जा रहे हैं। इनको काटने को लेकर कुछ समय तक तो समाज खड़ा होता है, फिर सब कुछ सामान्य गति से चलने लगता है। हाल ही मे मुंबई में मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए आरे चलाकर जंगल काटे जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। आरे का उपयोग कर बड़ी संख्या में पेड़ काट दिए गए। खूब हंगामा हुआ।

पिछले साल दिल्ली में सरकारी बाबुओं की कुछ कॉलोनियों को तोड़ा जाना पहले से था। ताकि उनके स्थान पर नई कॉलोनियों का विकास किया जा सके। यहां तक सब ठीक है। क्योंकि पुरानी इमारतें एकतय वक्त के बाद तोड़ी ही जाती हैं। फिर वहां पर वर्तमान आवशकताओं के अनुसार नया निर्माण होता है। तब भी हजारों पेड़ काटे जाने थे । पर दिल्ली वालों के कड़े विरोध के बाद तय किया गया कि नई कॉलोनियों को विकसित करते वक्त कोई पेड़ नहीं काटा जाएगा। हालांकि तब तक बहुत सारे पेड़ कट चुके थे।यही हाल पटना के गर्दनीबाग मुहल्ले में हो रहा है। लगभग चालीस सडकों वाला यह सुन्दर मुहल्ला पटना के सबसे हरे भरे इलाके में माना जाताथा। हजारों क्वार्टर और उसमें लाखों वृक्ष। कुछ तो सरकार ने लगाये थे, कुछ रहनेवाले बाबुओं ने खुद लगाये थे। सुना है अब वहां नई आधुनिक कॉलोनी बसेगी जिसके लिए लगभग सारे वृक्ष काटकर गिरा दिये जायेंगें। अगर सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की रिपोर्ट को माने तो पिछले पांच सालों में देश में अलग-अलग परियोजनाओं को लागू करने के लिए एक करोड़ से अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं। अभी 35 लाख से अधिक पेड़ और काटे जाने की योजना बन चुकी है।बेशक यह आंकड़ा बेहद डरावना और निराश करने वाला है। देश को सोचना होगा कि क्या हमें इतने पेड़ काटने चाहिए थे ? महाराष्ट्र के महत्वाकांक्षी मुंबई-नागपुर एक्सप्रेसवे के लिए ही करीब 11 लाख पेड़ काटे जाने की बात कही जा रही है। अब राजधानी के 50 और 60 के दशकों में बने निर्माण भवन, शास्त्री भवन, उद्योग भवन को तोड़कर नए सिरे से भवनों को बनाने की योजना पर काम चल रहा है। माना जा रहा है कि दीपोत्सव से पहले ही सरकार उस कंपनी के नाम पर अंतिम निर्णय ले लगी जिसे उपर्युक्त महत्वाकांक्षीप्रोजेक्ट पर काम करने की जिम्मेवारी दी जायेगी।पहले आशंका व्यक्त की जा रही थी कि इस प्रोजेक्ट के दौरान शुरू में बहुत ज्यादा तोडफोड होगी और हजारों पेड़ भी कटेंगे। पर अच्छी बात तो यह है कि केन्द्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने आश्वस्त किया है कि इस सारे प्रोजेक्ट को पूरा करने के दौरान कोई भी पेड़ नहीं काटा जाएगा। प्रश्न यह है कि अगर दिल्ली में पेड़ कटने से बचाये जा सकते हैं तो वे दिल्ली से बाहर क्यों काट जा रहे हैं? पहले तो पर्यावरणविद भी आशंका जता रहे थे इन तीनों इमारतों के परिसर के भीतर लगे सैकड़ों पेड़ों पर आरा ही चलेगा। इन भवनों में के आसपास भी जामुन, नीम और अशोक के छायादार पेड़ लगे हुए हैं। दरअसल गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक पूरे देश भर में विकास के नाम पर वृक्षों को काटा जा रहा है। इसी तरह से राष्ट्रीय और राज्य मार्गों को चौड़ा करने के नाम पर भी पुरानेपीपल, बरगद, आम, जामुन आदि के हरे-भरे पेड़ों को काटा जा रहा है।

अगर बात उत्तर प्रदेश की करें तो लखनऊ-फैजाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग को फोर लेन बनाने के लिए 11 हजार पेड़ों की बलि चढ़ाई गई। जबकि लखनऊ-सीतापुर राष्ट्रीय राजमार्ग को चौड़ा करने के लिए 8,166 पुराने पेड़ काट दिए गए।जनता जानना चाहती है कि क्या इन काटे गए पेड़ों के स्थान पर नएपेड़ भी लगे? अब जरा बिहार की बात भी कर लें।झारखंड के अलग हो जाने के बाद बिहार की हरियाली घट गई और हरित क्षेत्रफल घटकर छहप्रतिशत के नीचे पहुंच गया। ऐसे में नीतीश कुमार सरकार प्रदेश में हरित क्षेत्रफल को बढ़ाकर कुल भू-भाग का 15 प्रतिशत करने की योजना तो बनाई है। बिहार में वृक्षारोपण के तहत हर साल कम से कम तीन करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य भी रखा गया है।लेकिन इस पर ईमानदारी से अमल हो तब तो बात बने। दरअसल पेड़ों की कटाई के बहुत बुरे असर सामने आ रहे हैं। पर्यावरण के प्रदूषित होने के कारण आज लोगों को कई तरह की प्राकृतिक आपदाओं का समाना करना पड़ रहा है। लेकिन, कोई नहीं सोच रहा है कि आखिर पर्यावरणपरिवर्तन क्यों और किस लिएहो रहा है। इसी तरह से वातावरण परिवर्तन से होने वाली घटनाओं के कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस सबके मूल में वजह लगातार हो रही पेड़ों की कटाई ही है। पेड़ों की कटाई के कारण जंगल भी खाली हो रहे हैं, जिसके कारण लगातार पर्यावरण में नकारात्मक परिवर्तन हो रहा है।पर्यावरण परिवर्तन से होने वाले नुकसान से बचने के लिए पेड़ों की कटाई पर यथाशीघ्र लगाम लगानी ही होगी, ताकि होने वाली प्राकृतिक आपदाओं से बचा जा सके।

डॉ. वंदना पालीवाल